सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ही नहीं पूरे वर्ष भर सम्मान की हकदार हैं महिलाएं। समाज ले महिलाओं की सुरक्षा का दायित्व तभी महिलाओं में जगेगा आत्मविश्वास।
लेखक: पूजा मिश्रा, मनोचिकित्सक।

The Exclusive Khabar. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हर जगह बधाईयों का तांता लगा है। लेकिन क्या यह सिर्फ एक दिन के लिए है और क्या इससे महिलाओं की समस्याओं का समाधान हो जाएगा? हम वुमेंस डे को कुछ ऐसे क्यों नहीं मनाते जिससे हर साल कुछ परिवर्तन हो और हम जिस समस्या का सामना कर रहे हैं, हमारी आने वाली पीढ़ी को ना करना पड़े।
आज हम वुमेंस डे मना रहे हैं और कल न्यूज़ में आयेगा कि किसी औरत या नाबालिग लड़की का रेप हुआ। मैं एक मनोचिकित्सक हूँ। एक छोटे से गाव से निकल कर यहाँ तक पहुँचना मेरे लिए कभी आसान नहीं रहा। कभी सार्वजनिक जगहों पर आदमियों के गंदे तरीके से छूना तो कभी उनके हवस भरी नजरों से स्वयं को बचाना। ये सिर्फ मेरी नहीं, हर उस औरत का अनुभव है जो सफल होने के लिए घर से बाहर निकली।
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दुनिया एक सफल औरत के अंदर कॉन्फिडेंस देखती है पर उसके पीछे बहुत सारे दुःख भरे अनुभव होते हैं, जिसे वो अपने मन में दबा कर हर वक़्त मुस्कुराती रहती है और गुजरे हुए उस बुरे अनुभव के कारण वो सफल होकर भी एक डरी हुई भयभीत औरत ही रह जाती है और कभी पूरी तरह सुरक्षित महसूस नहीं करती।
एक डॉक्टर द्वारा एक वर्किंग औरत को उसके वर्किंग प्लेस पर या तो निर्मम हत्या करा दिया जाता है या जॉब से घर लौटते वक़्त रेप करके मार दिया जाता है। हम इस दिवस को उस दिन मना पाएंगे जिस दिन हम पूर्ण रूप से सुरक्षित महसूस करेंगे। आज के दिन भारत की नागरिक होने के नाते मैं सिर्फ निवेदन करूँगी कि समाज हमें सुरक्षित महसूस करवाए, हमारे अंदर के डर को दूर करे।